कल मंदसौर में पुलिस फ़ायरिंग में 5 किसानों की मौत हो गई. जानकर काफी दुःख हुआ, लेकिन कोई विशेष हैरानी नहीं हुई. इसी साल जनवरी में प.बंगाल में मां,माटी और मानुष को समर्पित ममता बनर्जी की सरकार में दक्षिण 24 परगना ज़िले के भांगड़ में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों पर पुलिस ने गोलियां चलाईं, जिसमें दो युवकों की मौत हो गई. मध्य प्रदेश में उन्नीस साल पहले (12 जनवरी, 1998) को बैतूल ज़िले की मुलताई तहसील परिसर में पुलिस फ़ायरिंग में 24 किसानों की मौत हुई थी, जबकि 150 लोग गोली लगने से जख़्मी हो गए. उनमें कुछ शारीरिक अपंगता के शिकार भी हो गए. उस वक्त मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे. मारे गए किसान धरना-प्रदर्शनों के ज़रिए अपनी ज़ायज़ मांगें शासन-प्रशासन तक पहुंचानी चाही. लेकिन पुलिस ने उनकी विनती का जवाब बुलेट से दिया. आंदोलनकारी किसानों का नेतृत्त्व डॉ. सुनीलम @ समाजवादी सुनीलम कर रहे थे. 'मुलताई गोलीकांड' आज़ाद भारत में किसानों का सबसे बड़ा 'सरकारी नरसंहार' था. गोलीकांड और दो दर्ज़न किसानों की लाशें गिरने के बाद मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह कांग्रेस के आखिरी मुख्यमंत्री साबित हुए. जबकि, किसानों की सहानुभूति पाकर डॉ. सुनीलम मुलताई से दो बार विधायक निर्वाचित हुए. जब उन्हें बैतूल की ज़िला अदालत ने उम्रकैद की सज़ा सुनाई थी, उसके दो-तीन दिनों बाद मैं मुलताई आया.तहसील के उस अहाते में गया, जहां 'ज़ालियावाला बाग' हत्याकांड दोहराया गया था.फेसबुक पर 'अमौलिक ज़ज्बाती' लोगों की प्रचुर संख्या है. जैसे किसानों की लाश गिरी, वैसे ही मुख्यमंत्री शिवराज से इस्तीफ़ा मांगने लगे. इतना सस्ता व हल्का समझते हैं आप राजनीति और नेताओं को! सन् सैंतालीस के बाद देश में किसानों के सीने पर कई बार गोलियां उतारीं गईं. लेकिन आज तक किसी मुख्यमंत्री ने अपना इस्तीफ़ा नहीं दिया.भविष्य में भी नहीं देंगे, क्योंकि सरकारों में गोलियां चलती रहती हैं. यह कहना था केरल की प्रजा सोशलिस्ट पार्टी गठबंधन सरकार का. घटना अगस्त 1954 की है. टी. पिल्लई उन दिनों राज्य के मुख्यमंत्री थे. कोचीन के निकट निहत्थे आंदोलनकारी किसानों पर पुलिस ने गोलियां चलाई, जिसमें कई किसानों की मौत हो गई. डॉ. राममनोहर लोहिया पार्टी के महामंत्री थे. केरल गोलीकांड के वक़्त वे इलाहाबाद की नैनी जेल में बंद थे. बतौर महामंत्री तार भेजकर उन्होंने अपनी ही सरकार से इस्तीफ़ा मांग लिया.लेकिन पिल्लई समेत कई वरिष्ठ समाजवादी नेताओं ने लोहिया की बात नहीं मानी. नाराज़ लोहिया ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया. इस बारे में उनका कहना था,"किसानों पर गोलियां तो कांग्रेसी राज में चला करती हैं, अगर समाजवादी सरकार में गोलियां चलें तो हममें और कांग्रेस में क्या फर्क रह जाएगा"? इस तरह उन्होंने पार्टी छोड़ दी, लेकिन अपने सिद्धांत पर कायम रहे. ऐसा साहस किसी नेता और दल में आज नहीं दिखता. मंदसौर में 'किसानों का नरसंहार' भाजपा सरकार पर भारी पड़ेगा. मध्य प्रदेश में कांग्रेस को मुलताई गोलीकांड (बैतूल) में मारे गए 24 किसानों के शोक संतप्त परिजनों की आह लगी है. उस बर्बर घटना के बाद कांग्रेस सूबे की सत्ता से बाहर है. आज उसी ढर्रे पर भाजपा है. कोचीन, मुलताई और मंदसौर 'गोलीकांड'!!! केवल अलग-अलग तारीख़ें और सरकारें. याद रहे, उम्र और बहुमत कभी स्थायी नहीं रहता.
साभार Abhishek Ranjan Singh की फेसबुक वॉल से
Tags:
Article