मोहम्मद आसिफ
इंजीनियर अम्मार हैदर रिज़वी कहते है कि रमज़ान का महीना सारे महीनों का सरदार है क्योंकि अल्लाह ने जो शरफ़ फ़ज़ीलत इस मुबारक महीने को दिया है वो किसी दुसरे महीनों को नही दिया | अल्लाह ने इस महीने को उम्मत के लिए रहमत, बरकत और गुनहगार बन्दों के लिए मग़फ़ेरत का महीना क़रार दिया है | इस मुक़द्दस माह में अल्लाह की बे शुमार नेमतों का नुज़ूल होता है | अल्लाह इस महीने में शैतान को क़ैद कर लेता है ताकि वो नेक बन्दों को गुमराह न कर सके | इस पवित्र महीने में अल्लाह चाहता है कि मेरा बन्दा ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करे और मुझसे अपने गुनाहों की माफ़ी मांगे | वो बदनसीब है जो रमजान माह में अपने गुनाह माफ़ ना करा सके क्योंकि इस महीने में अल्लाह अपने गुनहगार बन्दों को माफ़ कर देता है | क़ुरआन में अल्लाह ने कहा कि ए साहिबे ईमान तुम पर रोज़े इस वजह से फ़र्ज़ किये गए ताकि तुम मुत्तक़ी बन जाओ | तुम पर रोज़े इस तरह से वाजिब किये गए है जैसे तुम से पिछले वालों पर थे | रमज़ान माह के तीन अशरे होते है रहमत, बरकत और मग़फ़ेरत | रोज़ा इंसानी किरदार को निखारता है और इंसान को अच्छी ज़िन्दगी जीने का सलीक़ा सिखाता है | रोज़ा सिर्फ़ सुबह से शाम तक भूखे प्यासे रहने का नाम नही होता बल्कि जिस्म के हर हिस्से के साथ रूह का भी रोज़ा होना चाहिए | कोई भी ऐसा काम न करें जो खुदा को नापसन्द हो | हर अमल अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ हो तभी रोज़ा क़ुबूल हो सकता है |आँख से बुरा न देखें, कान से बुरा न सुने, ज़बान से किसी को बुरा न कहे, हाथों से कोई ग़लत काम न करें, पैरों से चलकर ग़लत जगह न जाएं और अपने दिल में कोई ग़लत ख्याल न आने दें जिससे रोज़ा बातिल हो जाये| किसी पर भी किसी तरह का कोई जुल्म न करें | जो लोग रोज़े की हालत में कोई ग़लत काम करते है या दूसरों पर किसी तरह का कोई ज़ुल्म करते है तो उनका रोज़ा अल्लाह के नज़दीक क़ुबूल नही होगा | वो लोग सिर्फ़ अपने जिस्म को तकलीफ़ दे रहे है और दिखावे का रोज़ा रखते है | अल्लाह को दिखावे की कोई इबादत पसन्द नही है | अल्लाह अपने उसी रोज़ेदार बन्दे को पसन्द करता है जो खुलूसे दिल से अल्लाह की मर्ज़ी के मुताबिक़ रोज़े रखता है और खुदा रसूल एहलेबेत के हर हुक्म को मानता है | अल्लाह रोज़ेदार के मुँह की बदबू को बहुत पसन्द करता है | रोज़े की हालत में इंसान अपने रब के बहुत ज़्यादा क़रीब होता है | इस मुबारक महीने में हर पल हर लम्हा इबादत में शुमार होता है इसलिए ज़्यादा से ज़्यादा इबादत में मशगूल रहना चाहिए | मुबारक रमज़ान माह मे क़ुरआन की तिलावत करने और सुनने का बहुत सवाब है क्योंकि अल्लाह ने इसी महीने में शबे क़द्र मे अपने बन्दों की हिदायत के लिए मुक़द्दस किताब कलामे पाक को अपने सबसे प्यारे रसूल हज़रत मुहम्मद साहब पर नाज़िल किया | इस महीने मे जितना ज़्यादा हो सके हमे अपना वक़्त इबादत में गुज़ारना चाहिए |
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