एसपी मित्तल
बिहार के राज्यपाल
रामनाथ कोविंद को एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित कर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मास्टर स्ट्रोक खेला है। इससे विपक्ष भी चारों खाने
चित्त है। मीडिया में जितने भी नाम आ रहे थे, उनमें कोविंद का नाम शामिल नहीं था।
19 जून को सुबह जब भाजपा संसदीय दल की बैठक हो रही थी तब भी न्यूज चैनलों पर विदेश
मंत्री सुषमा स्वराज का नाम जोर-शोर से चल रहा था।
थोड़ी देर में
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कोविंद का नाम घोषित कर दिया। पीएम मोदी
ने अपनी ओर से फोन कर सोनिया गांधी को भी कोविंद के नाम की जानकारी दी। कोविंद का
नाम मोदी का मास्टर स्ट्रोक इसलिए भी है कि अब विपक्ष के दलित नेताओं को भी एनडीए
के उम्मीदवार का समर्थन करना होगा। इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि कोविंद ने दो बार
लोकसभा का चुनाव लड़ा और दोनों ही बार हार का सामना करना पड़ा। फलस्वरूप भाजपा को
राज्य सभा में भेजना पड़ा।
जानकारों की माने
तो नरेन्द्र मोदी ने कोविंद को राज्यपाल बनाने के समय ही राष्ट्रपति का उम्मीदवार
तय कर लिया था। केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने तो कह भी दिया जो राजनीतिक दल
कोविंद का विरोध करेगा, उसे दलित विरोधी माना जाएगा। यानि
मायावती जैसी नेताओं के लिए कोविंद का विरोध करना आसान नहीं होगा। कोविंद की
उम्मीदवारी का विरोध बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के लिए भी आसान नहीं होगा।
इसमें कोई दो राय
नहीं कि मोदी ने बहुत सोच-समझकर कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया
है। हो सकता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल कोविंद के सामने लोकसभा की पूर्व
अध्यक्ष मीरा कुमार को लाए। यदि विपक्ष को अपनी स्थिति कमजोर लगी तो वह कोविंद को
सर्वसम्मति से राष्ट्रपति बनाने की घोषणा भी कर सकता है।